ज़िंदगी का वज़ूद
ज़िंदगी का वज़ूद
सर्दियों में मुँह से निकलते धुएँ की मानिंद है ये ज़िंदगी
वज़ूद जिसका बस कुछ देर तक ही कायम रहता है
बाद उसके वो हवा हो जाता है
ना जाने कहाँ खो जाता है
या यूँ कहे के फ़ना हो जाता है
मगर जितनी देर भी वो कायम रहता है
कई तरह के अलग-अलग नज़ारे दिखाता है
कभी वो हँसी का छल्ला बन जाता है
तो कभी ग़मों का मोहल्ला सजाता है
कभी वो ख़ुशियों का मल्लाह बन जाता है
तो कभी ख़ाहिशों का दुमछल्ला कहलाता है
सर्दियों में मुँह से निकलते धुएं की मानिंद है ये ज़िंदगी
वजूद जिसका बस एक उम्र तक ही कायम रहता है
बाद उसके वो हवा हो जाता है
गहरी वाली नींद में सो जाता है
या यूँ कहे के धुआँ हो जाता है।