क्यों
क्यों
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें ?
कुछ भी लेना नहीं तुम्हें जब
करते क्यों बाजार की बातें ?
आते नहीं सामने क्यों
जो चेहरे हैं असली ?
मुखौटे में जीवन जीने की
रीत कहाँ से निकली ?
परदे के पीछे रहना जब
करते क्यों संसार की बातें ?
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें ?
अपने पौरुष बल पर क्या
तुम को नहीं भरोसा ?
पराधीनता के आगोश में
क्यों तुम रहे हमेशा ?
सिंहनी के वंशज होकर भी
करते क्यों लाचार सी बातें ?
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें ?
डिग्रियों की बैसाखी पर
कब तक रोज़ी ढूंढ़ी जायेगी ?
दिशाहीन श्रृंखला में कब तक
कड़ियां जोड़ी जायेगी ?
देखी नहीं नींव जब तुमने
करते क्यों आधार की बातें ?
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें ?
परिचय मिला नहीं जीवन में
जिनको अभी किनारों का
हाल भला कैसे कहते वो
बीच नदी की धारों का ?
देखी नहीं नाव जब तुमने
करते क्यों पतवार की बातें ?
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें ?
शकुनी के शतरंजी पाशों ने
चली है जब भी टेढ़ी चालें
पाँच-पाँच पतियों की पत्नी
फिर छठवें के हुयी हवाले
मर्यादा की चौपड़ है तो
करते क्यों व्याभिचार की बातें ?
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें ?
इंद्र के मायावी रूपों से
कब तक अहिल्या छली जायेगी ?
धर्म रक्षकों की छाती पर
कब तक यूँ ही मूंग दली जायेगी ?
शील भंग जब कर्म तुम्हारा
करते क्यों संस्कार की बातें ?
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें ?
शर-शैय्या पर भीष्म पितामह की
साँस कहाँ टूटने पायी ?
शस्त्र और शास्त्र साथ मिले जब
अधर्म ने है मुंह की खाई ।
करना है "अमरेश" तुम्हे कुछ
करते क्यों न सुधार की बातें ?
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें ?