पुरानी याद
पुरानी याद
वह शहर और घर
सपने जैसे शहर में
ख्वाब सी लगती वह इमारत
कभी इस छत के नीचे
मेरा बचपन मौजूद था
धुंधली सी रौशनी की चमक में
फिर याद आती हैं
ऊबड़-खाबड़ राहें
जहां अंधेरे भी अक्सर
चले आते थे एक डर साथ लिए
गिरने का डर साथ लिये
हर पल चलते जाते
सच बनकर सपना जो सामने खड़ा
फिर एक ख्वाब बन जायेगा
लौटे हुए कदम फिर चले जायेंगे
अपने शहर और घर की ओर
कितना अजीब है
अपना सच हमेशा साथ रहता
चाहे भले ही सपनों की दुनिया में
सच होकर सामने आ जाते
ख्वाब जब हकीकत बनकर
पुरानी याद हमें कहां छोड़ पाती हैं।