उम्मीद
उम्मीद
उन्होंने जाते हुए मुझसे कहा था कि ,
मैं जल्दी तुम्हारे लिए वापस आऊंगा ।
इस बार देखना मैं सब कुछ छोड़ कर,
सिर्फ तुम्हारे साथ वक्त बताऊंगा।
मैं इंतजार करतीं रही बेसब्री से पर,
दरवाजे पर एक खत आया था।
पता चला कि इस बार संदेशा नहीं,
किसी तुफान का दस्तक लाया था।
उस खत में शहीद होने वाले कुछ,
नौजवानों का सम्मान और नाम था।
रूकने वाली सासें थम सी गयी थी,
ख्वाब दिखाने वाला ही गुमनाम था।
फक्र करूँ शहादत की या फिक्र करूँ,
अब कुछ भी समझ में आता नहीं ,
हर शाम इंतजार करतीं रहतीं हूँ,
पर वो एक भूला हैं जो आता नहीं।
आज भी इंतजार है उन वादों का,
जो कहते थे इस बार वापस आऊंगा।
शादी की पहली रात ना मिलीं तो क्या,
कुछ रात तुम्हारे ख्वाब सजाऊंगा।
चाहने वाले दो दिल बिछड़ ही जाते हैं,
जाने यह इस जहां की कैसी रीत है।
सुबह का भूला शाम को वापस आता है,
मुझे भी ऐसी ही कुछ उम्मीद है।