गुलमोहर
गुलमोहर
माँ ने कहा था
देर ना करना
दिन ढले लौट आना
अचानक बादल घुमड़ता है
बारिश की छींटे
कपडों में छप जाती है।
ज़माने वाले तो नासमझ है
सवालों की धुंध जम जाएंगे
दाग चाहे चाँद में भरी हो
कहानी चोट भरी बनाएंगे।
माँ ने ये भी कहा था
मैं सब से अलग हूँ
बचपन की नन्ही गुड़िया हूँ
भले ही मुझे
शर्म की चुनरी ओढ़नी पड़े
पर अब भी मैं
कली सी मासूम हूँ।
मेरी गली के चौराहे पर
सन्नाटे की पेड़
जिसकी टहनी आदमखोर है
मसले गए हैं
कई नाजुक फूल गुड़ियों के साथ
मुझे वहाँ से आज गुज़रना हैं।
माँ ने कहा तो था
पर रास्ता लम्बा हैं
सूरज की परछाई छुप रही है..
गुलमोहर की लाली
मेरी चूनर से भी गहरी
चौराहे की उस पार
मेरे घर की गली।
माँ ने कहा था
दिन ढले लौट आना।