शहर बड़ा मौन है
शहर बड़ा मौन है
ये नाम का शहर,
ये प्यार का शहर,
शहर बड़ा मौन है,
शहर बड़ा उदास है ।
मैंने एक बच्चे से पूछा,
क्यों उदास है रे तू ?
कहता मेरी माँ मर गई,
चाँद से जैसे चांदनी उतर गई ।
मेरा घर मस्जिद के पास है,
शहर बड़ा मौन है,
शहर बड़ा उदास है ।
एक बूढ़ी माँ,
चेहरे पर शिकन लिए हुए,
पथराई आँखें,
मानो दिल पर वजन लिए हुए ।
मैंने पूछ डाला,
तू क्यों माँ उदास है,
उत्तर मिला-
मेरे बेटे का लहू मेरे पास है।
शहर बड़ा मौन है,
शहर बड़ा उदास है ।
कुछ पल बात बढ़ी आगे,
मिल गए संकरे रास्ते,
आवाज आई मारो-मारो,
भाग न पाए बचके ।
पूछने लगे क्या तेरा कौम है,
मैं बोली, मैं ना हिंदू,
ना मुसलमान हूँ,
मैं तो एक इंसान हूँ ।
गुर्रा कर पूछे,
कहाँ तेरी इंसानियत का पास है ?
शहर बड़ा मौन है,
शहर बड़ा उदास है।