मालामाल या कंगाल
मालामाल या कंगाल
रिश्ते नाते खत्म हुए,
खत्म हुई इंसानियत।
बस पैसा ही सब कुछ है,
इसके बिना, कहाँ कुछ है।
पैसे वालों से ही रिश्ता,
"स्टेटस सिम्बल" कहलाता है।
गरीब के पास भी खड़े हुए,
तो अपमान हो जाता है।
साम, दाम, दंड, भेद,
पैसा कमाने में लगाते हैं।
सपनों में भी मालामाल होने,
उसको ख्याल आते हैं।
समय नहीं अपनों के लिये,
देर रात घर आते हैं।
"स्ट्रेस" में हैं हर दम,
जाने कौन कौन सी दवाई खाते हैं।
पाप कर लेते हैं जी भर,
फिर मंदिर मस्जिद जाते हैं।
दान में दे के ख़ूब चढ़ावे,
वो निश्चिन्त हो जाते हैं।
एक दिन जब काल आएगा,
छोड़ के माया तू जाएगा।
जितनी जरूरत उतना कमा,
क्षण भंगुर संसार है यह,
मिट्टी का है तू, मिट्टी में मिल जाएगा।
ठहर जा बस अब ठहर जा
मंजिलें पीछे छूट गईं।
हँसती खेलती ज़िंदगी तेरी,
अब तुझ से ही रूठ गई।
किसके लिये कमाना है,
जब तू ही नहीं है, रिश्ते नहीं,
तो सब कुछ बैमाना है।