मन
मन
बोझिल होता है जब मन
चाहे जितना भी कर लो जतन
अभिलाषाओं के आंगन में
ये मन चंचल कर देता पतन
जीवन सादा और साधारण
निश्चलता को कर धारण
निर्मल धारा जैसी बहती
मन की आशाओं की ज्योति
जितना चाहो उतना भर दो
फिर ये मन की बात ना होती।।
बोझिल होता है जब मन
चाहे जितना भी कर लो जतन
अभिलाषाओं के आंगन में
ये मन चंचल कर देता पतन
जीवन सादा और साधारण
निश्चलता को कर धारण
निर्मल धारा जैसी बहती
मन की आशाओं की ज्योति
जितना चाहो उतना भर दो
फिर ये मन की बात ना होती।।