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Prinkesh Jain

Abstract

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Prinkesh Jain

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दुनिया

दुनिया

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नहीं है यहाँ हवा में कुछ भी

कहीं नहीं अंतरिक्ष में कुछ

पाना है जो ज्ञान समग्र

तु केवल तेरे मन से पुछ...

विस्फोट हुआ था कहीं पे दुर

वहाँ से निकला समय प्रबल

शुरु किया ये चक्र फिर उसने

बनाना कल, आज और कल...

ये बाते थोड़ी भ्रामक हैं

पर गर्भ इसका भयानक है...

ये चल रही है ब्रम्हांड की गाथा

और हम सब इसके वाचक है...

इस अखील अनंत विश्व में

हम काहे के सिकंदर हैं ?

हमने तो बस क्षण देखे है,

साल तो और भी बीते हैं ...

अभी तो फैलाव और बढ़ेगा

काल का चक्का और घुमेगा

सभ्यतायें और नई खीलेगी

दुनिया और नई मिलेगी...

तारों के बीच बातें होंगी

नये ग्रहों से मुलाकाते होगी

कुछ उल्काए नये राज़ खोलेगी

अपने होने पर वो और बोलेगी...

आकाश में नई गंगा बहेगी

जो आज है कल नहीं रहेगी

कुछ युद्ध भी होंगे भयानक काले,

मौत के मंज़र होंगे विकराले...

उड़ते हुए शहर घुमेंगे

एक-दुजे से ऐसे ही लड़ेंगे

धरा पे सिर्फ लावा ही बहेगा

नर्क का उसको नाम मिलेगा...

धातु के तन चलते फिरेंगे

नसों की जगह तार बिछेंगे

लहु नहीं फिर तेल खोलेगा

यंत्र भी फिर यातनाए बोलेगा...

ये सब होना है, हो कर रहेगा

भाग्य को कोई ना रोक सकेगा

बस समझ जाओगे जो ये सत्य तुम

तो मन में कभी ना कोई शोक बहेगा...


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