नामौजूद प्रेम
नामौजूद प्रेम
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एक सुबह
सूरज लाल नहीं था
एक सुबह नीला नहीं था आकाश
नहीं था गुलाबी गुलाब
घास सादा थी
लाल बत्ती पर मुश्क़िल था फ़र्क़ करना
बीच लाल और हरे के.…
एक सुबह सारे पोस्टर
हो रखे थे श्वेत श्याम
कुल मिलाकर उस सुबह में रंग नहीं थे
एक सुबह
नहीं बजा अलार्म
नहीं रँभाई गायें ना मिमियाईं बकरियाँ
नहीं टनटनाईं साइकिलों की घंटियाँ
कूड़े दूध और अख़बार वाले गूँगे रहे
नहीं सुनाई दिऐ मोटरों के हॉर्न
पायलों-रुनकों की छनक
बर्तनों की खनक
एक सुबह ख़ामोश रही बच्चों की खिलखिलाहट
कुल मिलाकर उस सुबह में आवाज़ नहीं थी
एक सुबह
फीकी थी चाय
कॉफी थी पानी सी
आमों में मिठास गायब थी
पराठों-आम्लेटों नमकीनों में नहीं था नमक
सैंडविच ब्रेड या पाव भी रोज से न थे
और न मसाले
मिर्च तीखी नहीं थी
एक सुबह करेले तक कड़वे न थे
कुल मिलाकर उस सुबह में स्वाद नहीं था
एक सुबह
बेला-चमेली में ख़ुश्बू नहीं थी
न धूप-अगरबत्ती में
न केसर ना केवड़े में
न साबुन शैम्पू में
ना ही इत्र या परफ्यूम में सुगंध थी
जलेबियों से मीठी गंध नहीं उठी
बासमती में नहीं मिला सोंधापन
एक सुबह दिखा हवा में कुँवारापन
कुल मिलाकर उस सुबह में महक नहीं थी
एक सुबह
स्पर्श-स्पर्श नहीं था
चाय गर्म नहीं पानी में ठंडापन नहीं
ना लगी कमीजों में ढँक लेने जैसी बात
घर और बाहर तापमान एक था
नहीं थी मुस्कान में ताज़गी
न आलिंगन में ऊष्मा
न चुम्बन में सिहरन
न भय में कँपकँपी
कुल मिलाकर उस सुबह में एहसास नहीं था
सच कहें तो वो सुबह सुबह नहीं थी
उसमे सुबह जैसा कुछ नहीं था
क्योंकि उस सुबह प्रेम नामौजूद था
बीती रात नफ़रतों ने घेरकर क़त्ल कर दिया था उसका
डर जाता हूँ सोचते हुऐ
क्या हो जो
दुनिया की हर रात होने लगे ठीक ऐसी ही काली