मैं और गम
मैं और गम
अपने गम से मैंने आज कुछ बात किया,
खुशियों के पल में गम को भी याद किया।
वह गम शायद थोड़ा बड़ा ही उदास था,
लोगों की बातें सुनकर वो हताश था।
मैंने कहा चल मैं कुछ पल रुकता हूं,
तू अकेला है इसलिए तेरे साथ ठहरता हूँ।
पता चला मुझे इस गम ने बहुत कुछ तोला है,
कठिनाइयों में सभी की आंखों को खोला है।
और गम को भी बहुत ही गम है,
क्योंकि इसके चाहने वाले भी कम है।
गले लगाकर मैंने गम से यूं कहा,
आज से हमारा भी एक दोस्ताना रहा।
खुशियां आयीं फिर मेरे पास,
साथ में आए मेरे चाहने वाले सभी खास।
दिन बीते तो खुशियां भी चलीं गयी,
इस बार साथ मेरे बस मेरी परछाई रहीं।
गम ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा,
तो रहे जहां भी मैं आऊंगा वहां।
इस गम ने तब से मुझे छोड़ा नहीं,
और मैंने भी गम का दिल कभी तोड़ा नहीं।
अब मैं अपनी खुशियां सभी को बताता हूं,
पर गम हो तो मैं अकेले ही मुस्कुराता हूं।