एक शिकायत है!
एक शिकायत है!
चाँद तुझसे एक शिकायत है,
दाग होते हुए भी तू लगता बहुत खास है।
याद है वो बचपन के दिन
जब माँ कहा करती थीं,
वो आसमान में तेरे चंदा मामा
तुझे देख रहें हैं।
इस धरती से बहुत दूर है मगर,
सबके मन के भीतर की बात जानते हैं।
आज भी जब तुझे आसमान में देखते हैं,
मन की बेचैनियां सारी दूर हो जाती हैं।
यूँ ही तुझे निहारते हुए,
आँखे ओझल हो जातीं हैं।
ना जाने कब हम गहरी नींद में खो जाते हैं,
और सपनों की सुदंर नगरी में पहुंच जाते हैं;
जहां ना कोई बुरा है,
ना कोई हालातों से मजबूर है,
ना कोई लालची है,
और ना कोई दुखी है।
यहाँ सभी साथ चलते हैं,
गिरने पर संभालते हैं।
दूसरे की खुशी में शामिल होते हैं,
किसी को गम हो तो बाँट लेते है;
कोई छोटी नहीं, कोई बड़ा नहीं,
यहाँ सब समान हैं।
पर आखें चौंधिया जाती हैं जब,
तू सूरज की रौशनी में कहीं खो जाता है।
चांद तुझसे यही एक शिकायत है,
हर सुबह तू यूँ छिप क्यों जीता है।