द्रौपदी – विलाप
द्रौपदी – विलाप
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दुश्मन खींचत चीर हमारी, अब
रखो लाज गोवर्धन धारी।
क्षत्री वंश का नाश हो गया,
सभा मे कलपत नारी।
दु:शासन दुर्दशा वनावत, दुर्योधन
ललकारी,
अब रखो लाज गोवर्धन धारी…
पाँव मे पीडा शरीर चोटील हुआ,
खींचत जात है साडी,
हे धरती तु खींच ले भीतर ,
अपना कलेजा फ़ारी।
अब रखो लाज गोवर्धन धारी।
सब अपना सपना हो गया, ना
अब जाल पसारी,
ससुर, भसुर, पति, देवर सब जन,
बैठे है मन मारी।
अब रखो लाज गोवर्धन धारी…।