अजीब मेहमान
अजीब मेहमान
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दिल से भी कह लेती हूँ खुश हूँ मैं,
क्या झूठ बोलना इतना आसान होता है,
ढूंढती रहती हूँ मगर जाने क्या
जब इर्द गिर्द मेरे तुम्हारा सामान होता है।
लगा लूँँ मुखोटा मैं भी तुम जैसा
मगर इससे भी दिल को कहाँँ इत्मीनान होता है ?
जी लेती हूँ यादों को और जीना भूल जाती हूँ,
जब ख्याल तुम्हारा मेरे और मेरे दरम्यान होता है।
ख्वाबों के जिन रास्तों पर तुम करते हो सफर
इंतज़ार मेरा वहाँँ रोज ही परेशान होता है,
आ कर बस जाए दिल मे, मगर रहे अजनबियों सा
क्या तुम सा भी कोई अजीब मेहमान होता है ?