"मैं औरत हूँ"
"मैं औरत हूँ"
मैं औरत हूँ,
प्रेम के आगोश में
मोम की तरह
पिघलती हूँ!
कठोर, कलुषित प्रहार से,
पत्थर की तरह
तटस्थ भी हो जाती हूँ!
निर्मल, शीतल स्वभाव की
स्वामिनी हूँ!
विपरित परिस्थिति में
बर्फ सी जम जाती हूँ!
पर एक स्नेहास्पर्श से,
मैं बूंद-बूंद गलती भी हूँ!
पूरी सृष्टि को खुद में समाने की
क्षमता रखती हूँ,
तो कुसृष्टि को विनष्ट करने की
शक्ति भी धारण करती हूँ!
संहारकर्त्री, सृजनकर्त्री दोनों
मैं ही हूँ।
मैं ही सृष्टि को स्वर्ग
बनाती हूँ!
तो मैं ही दुष्टों को नर्क का
द्वार भी दिखाती हूँ।
हाँ! मैं औरत हूँ
स्वयं में सम्पूर्ण!
मुझे महज एक
वस्तु मत समझना
व्यंग बाणों का घातक प्रहार
भी सहती हूँ।
खिलौना नही हूँ मैं!
कुदृष्टि का विषपान भी करती हूँ।
हाँ! मैं स्थिर पाषाण हूँ।
अग्नि में तपकर निकली
खरा सोना हूँ!
पांच तत्व से निर्मित हूँ,
सम्पूर्ण सृष्टि की द्योतक
मैं पूरा ब्रह्मांड हूँ!
मैं औरत हूँ!