प्रेम
प्रेम
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विषाद ही विषाद है
हर शब्द पर आरोप है
उम्र जलती साँझ है
आशाऐं नीर ही नीर है...।
मेघ से मोर की
पवन से जीवन की
रिश्तों की बनावटी फैसले
वास्तव में खेल ही खेल है....।
ऋतुओं को सँवारे यह मन जो
मिलन प्रियतम की
वह सदियों की मंत्रित पीड़ा
स्वरूप से छल ही छल है.... ।
अंतः सलिला है
कल्पनाओं की अद्भुत लहर है
संजीवनी की वह भाव-धारा
अंतरंग माया ही माया है...।
इस घड़ी में रेंगते
कुछ मृदु-मंद क्षण
वह ऊष्णता भर जाती है
स्पर्श की भ्रम ही भ्रम है....।
अभ्र को छंदमय कर दे
हर्षित सुमन-सुगंध प्रेम
जिसका परिभाषा अनंत काल से
मल्हार ही मल्हार है......।