इक अधूरी हक़ीक़त
इक अधूरी हक़ीक़त
इक अधूरी हक़ीक़त की तरह
अधूरा सा झिलमिलाता आता है
चाँद रौशन भी मुझे,
आज बोझिल सा नज़र आता है
करे कोई क़ैद जिस्म की दीवार में
चाँद का पाँव, आसमाँ पे फिसल जाता है,
रात पूनम को इश्क़ में पूरा हो कर
चाँद निर्मोही सा इंतज़ारमें जलाता है।