तो कह दूँगा कि देने को, ये दिल बरबाद लाया हूँ
तो कह दूँगा कि देने को, ये दिल बरबाद लाया हूँ
मुसाफ़िर हूँ तेरे दर पर मैं इक फरियाद लाया हूँ
दफ़न हैं कब से सीने में किसी की याद लाया हूँ
जो पूछेगा खुदा मुझसे, कहो क्या साथ लाये हो
तो कह दूँगा कि देने को, ये दिल बरबाद लाया हूँ
मेरी ख़ामोशियाँ भी,अब किसी का ज़िक्र करतीं हैं
जो मंजिल तक नही पहुँचूँ, तो राहें फ़िक्र करतीं हैं
मोहब्बत ने ज़माने में कहो, कब किसको बख्शा है
जो जाने बच गईं हमदम,ख़ुदा का शुक्र करतीं है
''कवि अपर्णेय''