फ़िर भी ना जाने क्यों
फ़िर भी ना जाने क्यों
माँ - बाप की मेहनत का फल ,
आज बच्चे लूट रहे !
फ़िर भी ना जाने क्यों ,
वो हमसे रूठ रहे !
हसरतें जो मन में थी ,
वो आज पूरी हो गयी !
फ़िर भी मन में घुटन लिए ,
हम खुद से ही जूझ रहे !
फ़िर भी ना जाने क्यों ,
बच्चे हमसे रूठ रहे !
आँखों के चिरागों से ,
उनको रोशन कर दिया !
फ़िर भी धुँधलापन लिए ,
हम अंधेरों में गुम हुए !
फ़िर भी ना जाने क्यों ,
बच्चे हमसे रूठ रहे !
ऊँगली के सहारे से ,
उनको आसमां पर बिठलाया !
फ़िर भी धूल सा गुब्बार लिए ,
आसमां में हम अपना हास्य ढूँढ रहे !
फ़िर भी ना जाने क्यों ,
बच्चे हमसे रूठ रहे !
तिनका - तिनका जोड़कर ,
उनको नीड़ में बिठलाया !
फ़िर भी तिनका साथ लिए ,
हम खुद का आशियाँ ढूँढ रहे !
फ़िर भी ना जाने क्यों ,
बच्चे हमसे रूठ रहे !
खुद को होम कर ,
बच्चों को परवान चढ़ाया !
आबाद रहे वह ,
इबादतों में शामिल पाया !
उड़ गए तस्वीर से ,
रंगों की तरह !
मुंडेर पर बैठे ,
परिंदों की तरह !
पिंजरा अपने हाथ लिए ,
हम उनको आज ढूँढ रहे !
फ़िर भी ना जाने क्यों ,
"शकुन" बच्चे हमसे रूठ रहे !