गज़ल
गज़ल
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बनाया था ख्वाबों का घर धीरे धीरे
हुई तब शहर को ख़बर धीरे धीरे
न मंज़िल का था कुछ पता चल दिये हम
कटा जिंदगी का सफ़र धीरे धीरे
बदल से गये मेरे शाम -ओ -सहर भी
मिली जब नज़र से नज़र धीरे धीरे
रहा आसमां ग़मज़दा तन्हा शब भर
वहीं चाँद सिसका मगर धीरे धीरे
पहुँच जायेंगी जब सदायें ख़ुदा तक
दुआ का भी होगा असर धीरे धीरे
बसेरा परिंदों का था शाख पे तब
हुआ बूढ़ा अब वो शज़र धीरे धीरे
गज़ल क्या है ' अंजू ' है क्या काफ़िया भी
मगर आ जायेगी बहार धीरे धीरे