सबब उदासी का
सबब उदासी का
आँखें बयाँ न कर दें,
सबब उदासी का,
फिर क्या मज़ा रह जाएगा,
ज़िंदगी का ।
वो एक बेहद ही,
खुशमिजाज़ जलपरी है,
मैं एक गहरा दरिया हूँ,
ख़ामोशी का ।
भटक कर बैठ जाना,
कोई ताज्जुब नहीं,
कोई नहीं ढूँढ सका है,
पता आसूदगी का ।
हादसों को मुजरे में,
बदलती है कैमरे से,
दुनिया एक मेला है,
ऐसी ही दरिंदगी का ।
सारे दुःख उग लिए,
फसल भी काट ली,
बता ख़ुदा, क्या करना है,
अब ज़मीं का ।
वो जो मेरे ऐबों से,
समझौता कर लेगा,
ख़्वाब देखता रहता हूँ,
उस अजनबी का ।