हम प्रेम के रोगी न थे
हम प्रेम के रोगी न थे
मोहब्बत नही थी मुझको तुझसे
पर तुमने कौन सा रोग है लगाया
हम ज़िंदा दिल के थे पर आशिक क्यों हुए
तेरी यादों ने हमको प्यार में रोगी है बनाया
नही चाहते तुझसे कोई राष लगे
उम्र पे मेरे प्यार का नया राग बने
हम राही अनजाने थे इस डगर के
पर तूने हमको क्यों प्यार सिखलाया
रागिनी की जैसी परछाई तेरी
मुझको तू उजाले में भी रौशनी दिखे
कैसा रोग तूने मुझ पर है बैठाया
हम आशिक तेरे सिर्फ दीवाने दिखलाते
गुजार लेता उम्र सिर्फ तन्हा होकर
पर तुमने मुझपर कैसा बंधन है बधवाया
जाकर दूर तुमसे मन पास तेरे आता
ये कैसी नियति तेरी मुझको पास है बुलाता
मेरी दुनिया क्यों तुमने मुझसे है छुड़वायी
साथ अपने लेकर क्यों आचरण पर राग लगायी
हम तो प्रेमी मन के गीत गजल अपने गाते रहते थे
पर तेरे दो नयनों ने मुझको हमेशा राह से है भटकायी