हर लम्हा हर पल संभाला तूने माँ
हर लम्हा हर पल संभाला तूने माँ
एक तू ही है कि जिसने
मेरी पीड़ा को छावं दी
वरना
टूट गया था मैं तो
हर बार हर लम्हा
हर पल सम्भाला
तूने वरना
इतनी शानो शौकत से
कहाँ खड़ा कर पाता
अपने आप को
एक तू ही तो थी माँ
जिसने बार-बार
हर बार संवारा मुझे
हर डगर हर राह पर
तूने ही तो हौसला बढ़ाया माँ !