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Mayank Kumar 'Singh'

Abstract

5.0  

Mayank Kumar 'Singh'

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कुछ उम्मीद

कुछ उम्मीद

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कुछ उम्मीदें घास के तिनकों की तरह बिखर गए,

वह पास थे लेकिन उनका साथ कोई और ले गए।


आसपास की बेचैनियां अब और नहीं देखे जाते,

उनके यादों के बिस्तर पर अब और नहीं सोए जाते।


गांव को उजाड़ कर उन्होंने शहर बसा लिया,

भरी महफिल में खुद का ही बोली लगा लिया !


मैं आसमान का सारा सितारा उन्हें सौंप देता,

गर वे अपने माथे की बिंदिया हमें सौंप देते।


आसपास हमारे इश्क के जबरदस्त चर्चे हैं,

लगता है हमारी तबाही इस जहान में खूब बरसे हैं !


किसी की मेहंदी किसी और के नाम हो गई,

लगता है इस जहान में सियासत और बढ़ गई !


उनकी हथेली पर मेहंदी आज फीकी उगती है,

हमारे इश्क का सबूत अब उन्हें साफ दिखती हैं !


मैं उनके इंतजार में रास्ता सा बन गया,

वह मुसाफ़िर हर वक्त एक रास्ता बदल गया !


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