ख़्वाब (गज़ल )
ख़्वाब (गज़ल )
वो करीब आये फिर भी ये दुरी रही,
क्या पता उनकी क्या मजबुरी रही।
हमने दिल से बहुत उनको चाहा सदा,
उनसे अपनी बड़ी जी हुजुरी रही।
ख्वाब में इस तरह बस गये प्यार से,
चाह मिलने की उनसे अधुरी रही।
आरजु दिल मे इतनी बढ़ी महेरबां ,
हसरतों से भरी कुछ बे सबुरी रही।
युं तुम्हारी तमन्ना ने खुब सदमें दीये,
कैसी फीतरत में तेरी ये गरुरी रही।
भा गइ जब नजर को वो हुस्ने अदा,
मन को छुती खुबसुरत एक नुरी रही।
अपना छोड़ो ये मासूम दीवाना पन,
उनकी दुनिया की चाहत जरुरी रही।