ये बचपन की बात है
ये बचपन की बात है
मेरे खेल खिलौने होते थे,
मिट्टी के दोने होते थे,
ज़मीं पर एक लकीर थी,
मेरे पैर भी बौने होते थे!
पर ज़मीं पर मैं न रहती थी,
मैं बहती थी,मैं बहती थी,
न जाने क्या-क्या कहती थी,
अपनी ही धुन में रहती थी!
कुछ हुआ कभी तो माफ़ किया,
न फिर वो गलती याद किया,
गिरती थी, संभलती थी,
पर रुकने का कभी न नाम लिया!
वो लड़की किस माटी की थी,
जो मुझमें है,जो मुझमें थी,
जो सबकी राज-दुलारी थी,
अपने सपनों की रानी थी!
वो ज़िंदा मुझमें है कहीं,
ढूँढ कर उसको लाऊँ मैं,
फिर अपने सपनों की दुनिया को,
एक नई दिशा ले जाऊँ मैं!
सपने और सच में फर्क नहीं,
बस हौसले की बात है,
जो उसमें थी, जो मुझमें नहीं,
पर छिपी है मुझमें वो यहीं-कहीं!
वो मिल जाए, मैं बन जाऊँ,
सम्पूर्ण उसी से हो जाऊँ,
बनकर फिर एक आगाज़ मैं,
जो हो न सका, वो कर जाऊँ!