त्यौहार
त्यौहार
मंज़िले दूर कितनी भी हों,
रास्तों को पता है कि आ रहा हूँ मैं।
अड़चने कितनी भी दुश्वारियां दें,
फ़ासलों को पता है उन्हे घटा रहा हूँ मैं।
मेरे वजूद को और मुझको चुनौती देते रहना,
कि मेरी ताकत यही है उसे बढ़ा रहा हूँ मैं।
कि बच्चों को दिलाना नये कपडे और पटाखे,
उम्मीदों को शकल देना कि आ रहा हूँ मैं।
माँ है तो वो बैठी होगी दहलीज पे आँखे ताके,
ठहरना कि उनकी आकुलता मिटाने आ रहा हूँ मैं।
उदास चेहरे पे सिलवटों को मिटा लेना ज़रा,
मुद्दतों बाद त्यौहार की शकल में आ रहा हूँ मैं।