उममीद
उममीद
खोया बहुत है मैंने,
मगर कुछ पाने की
ललक अभी तक बाकी है।
कारवाँ जो शुरू किया था कभी
उसे अंजाम तक ले जाने की
जिद भी ,अभी तक बाक़ी हैं।
जमाने के बिछाए बिसात पर
कभी चलता रहा,कभी गिर गया।
मगर ठहरने ना पाएँगे क़दम मेरे
कोशिश इतनी ,अभी तक बाक़ी है।
डगमगा रही है कश्ती,और
पानी की ऊँची लहरें हैं।
तैर कर ही सही ,किनारे आऊँगा।
हिममत इतनी ,अभी तक बाक़ी है।
लाख ख़्वाब हमारे टूटे तो क्या
या पथरीली कितनी भी राहें थी।
शीशे के महल बनाने की
खवाहिश ,अभी तक बाक़ी है।
दगा ना दे सकूँगा औरों को
आगे निकलने की होड़ में
बस ख़ुद पर ही विश्वास रहे
शील इतनी,
आँखों में अभी तक बाक़ी है।
दिखावा ना किया गया मुझसे
और नाम दे दिया सबने बेवफ़ाई का
बेपरवाह कह लो जितना चाहे
मगर परवाह ,अभी तक बाक़ी है।
लोग मिलते रहें, बिछड़ते रहें
साथ दिया किसी ने, कुछ छूट गए।
देखना है संग चलेगा कौन
उम्मीद अभी तक सबसे
थोड़ी ही सही ,मगर बाक़ी है।
खोया जरूर है मैंने बहुत,
मगर ,कुछ पाने की ललक
अभी तक बाक़ी है।