तुम्हें अंधेरे से इश्क़ क्यों है?
तुम्हें अंधेरे से इश्क़ क्यों है?
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कभी साड़ी का आंचल
कभी दुप्पटा
तो कभी हिज़ाब
कभी बुर्का ही सही
तुम्हें अंधेरे से इश्क़ क्यों है?
कभी स्वछंद हवा को आने तो दो खुद तक
मत तो दुहाई अपनी आज़ादी की
क्योंकि ये आज़ादी
कुछ दशकों बाद
बना दी जाती है गले की फांस
जब आदत बन जाती है परंपरा
फिर दुप्पटा और बुर्का बन जाती है नियति