8 मार्च तुम फिर आना
8 मार्च तुम फिर आना
आज फिर से बहेगी विचारों की गंगा
पूरा दिन पूरी रात
सब महसूस करेंगे शिद्दत से
पुरे दिन पूरी रात
फिर सब खुद में व्यस्त और मस्त
अगली सुबह रोज की आपाधापी में !
कहीं बह निकलेगी
विचार गंगा अपना किनारा ढूंढने
जिसे निरखते सब हैं पीड़ा के साथ
पर महसूस नहीं करते खुद के लिए कभी !
नारी विमर्श ,आज़ादी ,सशक्तिकरण और सुरक्षा
है जरूरी समाज और देश के विकास हेतु
पर खुद के घर में तो सब ठीकठाक है
ये तो विचारणीय है दूसरे के लिए !
और फिर अखबारों में पढ़ेंगे
पांच वर्ष की बच्ची से रेप
प्रशासन सक्रिय सरकार को खेद
पर कहीं कोई हल नहीं
फिर अगले दिन की न्यूज़
प्रोफेसर ने की छात्रा से छेड़छाड़
और जाने कितने किस्से
पुरे ३६५ दिन !
फिर आएगी 8 तारीख अगले मार्च
उन्ही विचारों की गंगा के साथ
नए संकल्प नए विकल्प के साथ !
प्रश्न ? यह की
कब बदलेगा परिदृश्य
अंतस मन की सतह के साथ !
और हम हर दिवस यह महसूस करेंगे कि
"नारी "तुम एक दिन की मोहताज़ नहीं !!