ममता
ममता
एक तू ही है माँ, जिसने अपने आँचल में हमें समेटा
और किसी में कहाँ देखा है, इतनी ममता की क्षमता।
तेरी बाहों में सिमटकर, जन्नत मुझको मिल गया
तू अगर रूठी तो, जीते जी मैं भी मर गया।
जब भी दर्द मिला कोई, मुँह से निकला सिर्फ माँ
जब बोलना भी नहीं सीखा था, तब भी रोता था सिर्फ माँ।
सर्दी ने जब मुझे सताया, नाक पल्लू में पोंछ लिया
ज़रा घिन न तुमने दिखाया, और माथे को चूम लिया।
ईश्वर ने तुम्हें कैसे बनाया, हर मनुष्य से इतना जुदा ?
और किसी में कहाँ भर पाता, इतनी ममता की क्षमता।