"मैंने नहींं तोड़े गुलाब"
"मैंने नहींं तोड़े गुलाब"
न दिऐ किसी को
न ही पाऐ किसी से
चलती रही सीधी सड़क पर
प्रेम में पगा अधिकार और उससे उपजा गर्व
नहीं अनुभूत किया जीवन में
उमंगें जवान हुई पर परवान नहीं चढ़ पाई
स्वानुशासन से दमित होती इच्छाएँ मेरा हासिल थी
नवजीवन में अधिकार नहीं थे
कर्तव्यों के बोझ से रोंदे गऐ अरमान
सीढ़ी बना कर सफलता की ऊँचाइयाँ चढ़ते रहे रिश्ते
ऊपर चढ़कर विस्मृत करते जाते उसकी उपयोगिता
बीतती उम्र के साथ कर्तव्यों के भार से
दोहरी हुई कमर अब अकेले अपने दर्द को जीती है
बैंगनी आकाश है,घुमड़ते मेघ हैं
पर कौन लौटाऐगा मेरा बीता वक़्त
जो मैंने वार दिया सबकी आकांक्षाओं को पूरा करने में
वे लोग सब इकट्ठे हैं,मेरे साथ के पुरुष के साथ
मैं एकाकी |