एक तमाशा उर्फ़ बाजीगर का गीत
एक तमाशा उर्फ़ बाजीगर का गीत
एक तमाशा उर्फ़ बाजीगर का गीत
आ बंजारे!
तुझे दिखाऊँ एक तमाशा
आग कि जो इस हवन-कुंड में दहक रही है
मेरे भीतर फूल-सरीखी महक रही है,
बोल रही है जल की भाषा,
आ बंजारे!
तुझे दिखाऊँ एक तमाशा
ये पहाड़ जो, गर्वोन्नत, सिर तान खड़ा है
मेरी छाती पर कैसा चुपचाप पड़ा है,
बना हुआ है तोला-माशा,
आ बंजारे!
तुझे दिखाऊँ एक तमाशा
मीठा झरना घाटी के भीतर बहता था,
अपनी प्यास बुझाओ-यह सबसे कहता था,
मैं जब लौटा, प्यासा-प्यासा
आ बंजारे!
तुझे दिखाऊँ एक तमाशा
जिसकी माँग बीच मैंने तारे बिखराये,
और पाँव में मोती के बिछुए पहनाये
निकली वही तवायफ़ आशा,
आ बंजारे!
तुझे दिखाऊँ एक तमाशा
पत्थर है लेकिन पल-पल में पिघल रही है,
मेरे मन में दुष्ट निराशा मचल रही है,
बाँट रही है दूध-बताशा,
आ बंजारे!
तुझे दिखाऊँ एक तमाशा
जीवन की चैपड़ खेलते बहुत दिन बीते
रहा मुक़द्दर ऐसा, हर बाज़ी हम जीते,
अबकी पलट गया हर पाँसा,
आ बंजारे!
तुझे दिखाऊँ एक तमाशा
जीवित रहने, इंच-इंच जो खिसक रही थी,
मरुथल के बीच में पड़ी जो सिसक रही थी,
अमृत पीती वही पिपासा,
आ बंजारे!
तुझे दिखाऊँ एक तमाशा
जल की तलाश करते-करते आग हुई जो
जलते अनंत मरु में हिरना राग हुई जो
अमृत पीती वही पिपासा
आ बंजारे!
तुझे दिखाऊँ एक तमाशा