अपनों की बात चली तो...
अपनों की बात चली तो...
अपनों की बात चली तो तुम्हारी याद आई
तुम्हारे साथ गुजरी हर सुबह, हर दुपहरी, हर शाम, हर रात याद आई
वर्षों बाद आज, जब फूलों की उस क्यारी में गया
पीले गुलाब पर नजर पड़ी, तुम्हारी याद आयी
दोस्तों के बीच जिक्र छिड़ा पहले प्यार का
दिल धक् से किया, बेसाख्ता तुम्हारी याद आयी
"दिल से दिल को राह" क्या होती है?
तुम्हारा नाम लिया और हिचकी आई,
तुम्हारी हरकतें तुम्हारी याद दिलाती हैं
किसी को कहते सुना, सर पे तेल रख दूँ, तुम्हारी याद आयी
किसी ने कहा, बत्ती मत बुझाओ, अँधेरे से डर लगता है
सुहाग रात की पूरी रात, जलता दिया और तुम्हारी याद आयी
चाची,काकी,जीजी ने जब बात छेड़ी बहुओं की
तुम्हारा नाम लेते-लेते, माँ की आँखें भर आई
कल जब अचानक माँ को, बाबूजी से कहते सुना-
कितनी बार बोल चुकी हूँ, एक आप हो कि सुनते ही नहीं !
सच बताऊँ, तब भी तुम्हारी याद आयी
कभी-कभी दिल कहता है, इन यादों से पूछूँ?
ये तो आती हैं, तुम क्यों नहीं आई?
अपना दिल हल्का करूँ किससे
जब से गई हो, जान पे मेरे बन आई।