पारिवारिक एकत्रीकरण की चाभी
पारिवारिक एकत्रीकरण की चाभी
प्रति वासगृह बनता है एक सुन्दर निवास,
जब परिवारजनों में होता है स्नेह ममता का आवास।
परस्पर प्रति प्रेम करता है पति पत्नी का एकत्रीकरण,
उपयुक्त समय में संतति सदा संभल के रखते हैं उनका एकीकरण।
एक ही मुद्रा के दो पार्श्व हैं भार्या भर्ता,
उनके पवित्र बंधन में कभी न आए विवाह विच्छेद की वार्ता।
स्वामी निर्माण करता है मौलिक घर,
स्त्री सूक्ष्म रूप से सम्पूर्ण करे अपने स्वामी का घर।
माता गृहिणी यदि घर में सम्प्राप्त कर रहे हैं आनंद,
तब समस्त संतान को सर्वदा मिलेगा संतोष सानंद।
अपने सदन में अनुचित है विवाहित दम्पतियों का वाद विवाद,
तब छोटे बच्चे संकोच भाव से करेंगे माता पिता के साथ संवाद।
कभी न कभी तो आएँगे अभिप्रायों में भेद,
सुयोग संजोग से भी आने नहीं देना है इस आत्मीय अनुबंध में छेद।
माता पिता के बिना संतान का जीवन यापन है अति जटिल,
इस कष्टकारी समय को लांघना बच्चों के लिए है अत्यंत कुटिल।
पति पत्नी है हर घर के लिए बहुत गुरुत्वपूर्ण,
उनके अनुराग लिप्त समय से होता है घर का परिवेश परिपूर्ण।
प्रीती प्रेम ही है पारिवारिक एकत्रीकरण की चाभी,
अन्तरंगित असीमित अनुरक्ति ही लाता है पति पत्नी के सम्बन्ध में सुगन्धित सुरभि।