नायाब
नायाब
मेरा अज़ीज़[1] घर से होकर इतना नायाब[2] निकलता है,
जिस तरह सुबह-सुबह फ़लक से आफ़ताब[3] निकलता है।
मंज़र ना पूछिए वो चेहरे से घनी ज़ुल्फ़ों को हटाने का,
जैसे अन्धेरी रात में आहिस्ता-आहिस्ता माहताब[4] निकलता है।
हल्का सा मुस्कुराने पर भी गालों का सुरख हो जाना,
मानो ओस की शबनम से खिला कोई गुलाब निकलता है।
माशा-अल्लाह[5], उनकी बातों की मिठास का ज़ाइका,
यूं लगता कि आबशार[6] से मिट्ठा-मिट्ठा आब निकलता है।
सुभान-अल्लाह[7], इक जादू सा है उनकी कोशिशों में भी,
उनका किया हर जत्न[8] अक्सर जो कामयाब निकलता है|
उनके लिबाज़ों की सादगी, वो ताज़गी, वो नाराज़गी,
उनकी हर अदा पर अशीश दिल से आदाब निकलता है।
[1] प्रेयसी
[2] दुर्लभ
[3] सूर्य
[4] चंद्रमा
[5] प्रशंसा
[6] झरना
[7] ईश्वर की प्रार्थना
[8] प्रयास