कर्मों का फल
कर्मों का फल
जीवन के कई रंगरूप है।
वो सब हमारे कर्मों के ही प्रतिरूप हैं।।
मुख्तसर में कहुँ तो खुदा की मर्ज़ी कुछ भी नहीं ।
हम सब अपनी-ही मर्ज़ी के दूत हैं।।
खुशी निकट है या विकट
हमारी सम्त पर निर्भर है।
जीवन का सिर्फ़ एक ही कायदा है।
हँसते-हँसाते रचना बसना है।
सीरत को सँवार,
खुदगर्ज़ी से ऊपर उठना है।।
सृजन को संकल्प बना अज़ाब को विस्मृत करना है।
अनर्गल प्रलापों से किनारा करना है।
सु़ृंदर सुनहले ख्वाबों को मुकम्मल रूप देना है।
जोश और होश से जीवन बसर कर रुतबा बेशुमार करना है।।