माँ
माँ
तेरे हाथो की कोमलता से,
मैनें पयार भरी थपकिया ली।
चली गई नींद की आगोश में,
पर माँ, सपने में भी मुझे, तुम ही मिली।
छोटे कदमों के सहारे जो मैं,
तुम तक बढ रही थी।
मुझे पास आता देख माँ,
तेरी ममता चहक रही थी।
मेरी शरारतो से परेशान थी दादी,
शायद पोते की चाह रही होगी।
पर आप दोनो की परवरिश रही,
कि मैं पयार उनका पा सकी।
माँ देखा था मैने छुपके,
तु रो रही थी आँचल में मुहॅ धक के।
जब तेरी बिटिया गई तुझसे दूर,
अपनी पढाई की यात्रा शुरू करने।
माँ उस समय निकलते मोतियों की मैं,
कीमत नही समझ पाई थी।
दीदी ने भी तो रो-रो कर,
सारी रात बिताई थी।
मैं उस दिन तो कुछ भी नही समझी,
पर तेरी उदासी देख के रोई थी।
ना जाने तुने कैसे वो,
विरह की रात बिताई थी।
पहली मिलन पे तेरी खुशी,
माँ, तेरा मुखडा खिल आया था।
जैसे लू से झुलसती कली को,
सावन ने नहलाया था।
तेरा आनंद देख माँ,
मेरा मन भी भर आया था।
पर आज भी ना समझ पाऊँ,
कि तेरी ममता ने, कया खोया, कया पाया था।
माँ ये निशछल पयार तेरा,
जो सर्वसव मुझपे लुटाता है।
बस उढेलता लगातार,
बदले में कुछ नहीं मांगता है।
तेरे हाथो की कोमलता से,
मैनें पयार भरी थपकिया ली।
चली गई नींद की आगोश में,
पर माँ, सपने में भी मुझे, तुम ही मिली।
छोटे कदमों के सहारे जो मैं,
तुम तक बढ रही थी।
मुझे पास आता देख माँ,
तेरी ममता चहक रही थी।
मेरी शरारतो से परेशान थी दादी,
शायद पोते की चाह रही होगी।
पर आप दोनो की परवरिश रही,
कि मैं पयार उनका पा सकी।
माँ देखा था मैने छुपके,
तु रो रही थी आँचल में मुहॅ धक के।
जब तेरी बिटिया गई तुझसे दूर,
अपनी पढाई की यात्रा शुरू करने।
माँ उस समय निकलते मोतियों की मैं,
कीमत नही समझ पाई थी।
दीदी ने भी तो रो-रो कर,
सारी रात बिताई थी।
मैं उस दिन तो कुछ भी नही समझी,
पर तेरी उदासी देख के रोई थी।
ना जाने तुने कैसे वो,
विरह की रात बिताई थी।
पहली मिलन पे तेरी खुशी,
माँ, तेरा मुखडा खिल आया था।
जैसे लू से झुलसती कली को,
सावन ने नहलाया था।
तेरा आनंद देख माँ,
मेरा मन भी भर आया था।
पर आज भी ना समझ पाऊँ,
कि तेरी ममता ने, कया खोया, कया पाया था।
माँ ये निशछल पयार तेरा,
जो सर्वसव मुझपे लुटाता है।
बस उढेलता लगातार,
बदले में कुछ नहीं मांगता है।