समझौता
समझौता
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तकरार यूँ बढ़ाकर हम
दोष एक दूजे को देते हैं
बातें कड़वी छोड़ो आओ
समझौता कर लेते हैं
तुम बिन कोई भी नहीं
मेरा दर्द समझ पाता है
शिकवे भले ही कितने हो
दिल को तू ही भाता है
कभी कभी तकरार से
जीवन में प्रेम बढ़ता है
समझौता गर कर ले तो
रंग वफा का चढ़ता है।।