आशियाना
आशियाना
चलो फिर इक नया घर बनाते हैं
तुम्हारे और हमारे अहं से परे
इसे हौसलों से सजाते हैं,
चलो फिर इक नया घर बनाते हैं.
जहां “मै” और “तुम” हम रहें
हार-जीत सांझी रहे,
मतभेद-मनभेद ना रहे
जहां पानी की सुराही रहे.
चलो तो फिर इक नया घर बनाते हैं.
आंगन मे नीम तले झूलना झुलाते हैं
बच्चों को हम अपने सफर के,
सुनहरे पल गिनाते हैं
मोम हैं वे जरा संभल के सुलाते हैं.
चलो तो फिर इक नया घर बनाते हैं.
वक्त बदला हो फिर भी फिसलता तो वक्त है
मुठ्ठी में बांधे नये हौसले सजाते हैं,
स्याह रात से भोर तलक इक दिया जलाते हैं
चलो तो फिर इक नया घर बनाते हैं.
खानाबदोशी में फिर सिफ़र से सैकड़ा बनाते हैं
तुम साथ तो दो, अमरायी से मीठे आम लाते हैं,
बदलते समय में भी “मै” से “हम” बन जाते हैं
चलो तो फिर इक नया घर बनाते हैं........
चलो तो फिर इक नया घर बनाते हैं.