उड़ान
उड़ान
चूल्हा चौकी व बरतन थाली,
रोटी चावल औ चाय की प्याली,
बचपन का बदलो रुख,
थोड़ा दे दो इनसे इन्हें आज़ादी।
बेटी का मतलब कुछ समझो,
नहीं ध्येय बस इनकी शादी,
ला बैठा रख दो घर में कि,
इनसे बढ़ती रहे आबादी।
पर इनके न कतरो ऐसे,
खुले गगन को है पर आतूर,
तोड़ समाज के पिंजर बंधन,
नाप अम्बर लेने को व्याकुल।
खुदा नहीं करता कोई अंतर,
भेद भाव मत होने दो,
बेटा बेटी हैं एक बराबर,
उड़ान इन्हें भी भरने दो।