गुलाब का इश्क़
गुलाब का इश्क़
यूँ तो खिलते हैं, कमल फूल
दलदली भूमियारे में
एक गुलाब खिल उठा मेरे
गलियारे में
पानी देती जब उसे में
प्रातः सवेरा में
एक सवाल करता वो मुझसे
अक़्सर, जवाबों के घेरो में
प्रश्न भी उसका इश्क़ पर था
की काँटों से मेरा क्या नाता है,
और क्यूँ वो चुभता हर किसी को
जब कोई गुलाब को स्पर्श लगाता है।
हरी भरी ये क्यारियाँ इर्द-गिर्द
सजावट बसंत सावन बनी
मेरे गलियारे में फिर से
सूक्ष्म फूलों की बेलाएँ खिली।