तेरी खातिर
तेरी खातिर
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पत्थर को सर झुकाना, है खुद में एक धोखा
तेरे लिए ही खुद को, धोखा दिया है मैंने
इन आँखों में है आंसू, और दिल में दर्द भी है
पाने को तुम को देखो, क्या-क्या किया है मैंने
राहों में अपनी देखो, अब गुल ही गुल खिले हैं
तेरे साथ चलने का, वादा किया है मैंने
रातों की चांदनी भी, लगने लगी भली है
तारों को गिनना, अब छोड़ दिया है मैंने
रातों के अंधेरों का, अब खौफ़ नहीं मुझको
एक चाँद आसमां का, अब पा लिया है मैंने