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Rashi Singh

Others

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Rashi Singh

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यादों की परछाईयां

यादों की परछाईयां

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बहुत धुंधली हो गयी हैं ज़िंदगी

अब तो यादों की परछाईयां

आँखों की धुंधलाती रौशनी जैसी 

तरह हो गयी हैं

कितना कौतहूल था जीवन में

प्रकृति के संगीत की तरह

अब तो बेस्वाद नीरस है ज़िन्दगी

सूखी डाली की तरह

वो शाम को ढलते सूरज को देखना

तन्हाई में, मंद पवन को महसूस करना

वो छत पर तारों की लुका-छीपी देखना

बंद फ्लैट में खो गई है जिन्दगी

अँधेरे की तरह,

भोर मे आंख का खुलना

वो पंछियों की चेहचाहट का संगीत सुनना

वो मंदिर की घंटी

वो मस्जीद की अजान सुनना 

लेकिन अब बहुत धुंधली हो गई है ज़िन्दगी।


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