है क्या गुनाह मेरा
है क्या गुनाह मेरा
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किस बात की दे रहा सज़ा मुझे
है क्या गुनाह मेरा, बता मुझे ।
हिम्मत नहीं अब और सहने की
रुक भी जा, ऐ दर्द न सता मुझे ।
या ख़ुदा ! अदना-सा इंसान हूँ
टूट जाऊँगा न आजमा मुझे ।
क्यों चुप रहा उसकी तौहीन देखकर
ये पूछती है मेरी वफ़ा मुझे ।
आखिर ये बेनूरी तो छटे
किन्हीं बहानों से बहला मुझे ।
एक अनजाना - सा खौफ हावी है
अब क्या कहूँ ' विर्क ' हुआ क्या मुझे ।