गर मुमकिन हो
गर मुमकिन हो
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गर मुमकिन हो मंज़िल न सही,
राह ही बन जाओ,
तुम मेरा कल न सही,
आज ही बन जाओ !
हाथों की लकीरों में,
छिपी है ख़ामियाँ कई,
उनके बदल जाने की,
आस ही बन जाओ !
मेरी भूली-बिसरी यादों में,
छिपे हुए दर्द हैं,
तुम मेरे कल की खूबसूरत,
याद ही बन जाओ !
खो चुका हूँ अपनी,
नादानियाँ कहीं पीछे,
तुम मेरी मासूमियत की,
पहचान ही बन जाओ !