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Gautam Sagar

Children Stories Inspirational

5.0  

Gautam Sagar

Children Stories Inspirational

मार्क्स का सर्कस

मार्क्स का सर्कस

5 mins
541


33% से कम मार्क्स वाले 

निराश मत होना प्यारे 

अंकों से जीवन नहीं चलता 

मार्क्स के पेड़ पर ही 

कामयाबी के फल नहीं फलता 


यह हार नही

एक ब्रेक है 

जो तुम्हें मिला है 

सोचने के लिए 

अपने अंदर झाँकने के लिए 

और एक बाज की तरह 

अपनी शक्तियों को समेट 

पुन: उड़ान भरने के लिए 


60% से कम 

अंक लाने वाले एकलव्यों

क्या सोचते हो 

तुम ना जीते ना हारे 

ना जुगनू बन सके 


ना सितारे 

तो नज़रिया को बदलो

एक मैच में 

में अच्छा बुरा करने से 

कैसे कह सकते हो 

तुम जीते कि हारे 


अभी जीवन में कई मौके आएगे 

जो तुम्हें कुंदन की तरह चमकाएँगे

औसत मत समझो खुद को 

सर्वश्रेष्ट आना तो अभी बाकी है 

अवरेज़ मत आंकों अपने आप को 

नई साँस लो लंबा आलाप दो 


90% से कम मार्क्स वाले 

कैसा महसूस कर रहे हो 

ठीक वैसा 

जैसा कर्ण ने अर्जुन के सामने 

भरी सभा में किया था 


बस थोड़ा से चूक गये 

कहीं कोई कसर रह गयी 

बनते बनते तुम्हारी भी 

एक प्यारी खबर रह गयी 


तुम्हारे घर लड्डू भी हल्के 

मातम वाले बँट रहे है 

सेल्फी में मुँह ली मिठाई 

ना निगल पा रहे हो

ना झटक पा रहे हो 

तुम बेहतर हो यह 

साबित तो कर दिया है 


रही बात अंकों की 

रही बात उच्च्तम अंकों वाले

दोस्तों के आटिट्यूड की 

तो इग्नोर करो 

यार अभी तुमने तो 

पंद्रह सोलह ही तो वसंत देखे है 


अभी तो हृदय को फौलाद 

बनाने के दिन है 

अभी तो तेरे हँसने 

गुनगुनाने के दिन है


नयी दिशाएं खुल रही है 

नयी राहे मचल रही है 

पी टी उषा को सब जानते है 

एक सेकेंड के सौवें हिस्से से रह गयी थी 

ओलंपिक में 


बाद में कितनों ने मेडल लिए 

लेकिन उस हौसलें की बराबरी

किसी ने नहीं की 


90 प्लस पर्सेंटेज वाले 

पार्टी बनती है 

उत्सव तुम्हारा है

परिश्रम का 

सुखद क्षण आया है 


आँखों के चश्में के नंबर चेक करो

थोड़ा कुछ दिन रिलॅक्स करो 


जितनी बड़ी जीत उतनी बड़ी ज़िम्मेदारी 

तुमपर चुनौती है कामयाबी - शिखर पर 

क्या तुम टीके रहते हो 

क्या तुम मोटीवेटेड रहते हो 

या बस इस नशे में डूब जाते हो 

या पुराने दोस्तों को भूल जाते हो 


तुम अर्जुन हो 

मछली की आँख पर 

तुम्हारा तीर लगा है 

आगे अपने तरकश में देखो 

और नये तीर से उसे भरते रहो 


अंकों के काल्पनिक एवरेस्ट पर 

मत इतराना 

जीवना में खुद भी और दूसरो को 

भी बड़ा बनाना 


आइस्टिन अपनी कक्षा में 

प्रथम नहीं थे

कोई और होगा 

उसे कोई नहीं जानती 

उसने आइंस्टीन से अधिक मार्क्स 

लाए थे 


मगर उसने आइंस्टीन को कम आँका होगा 

स्वयं को ज़रूरत से अधिक समझा होगा 

कहीं तुम सोशियल मीडीया वाले 

लाइक्स , कॉमेंट्स में ना बह जाओ 

कहीं तुम सचिन बनने से पहले 


कांबली ना बन जाओ 

तुम अंतरिक्ष की कक्षा में 

स्थापित होने के लिए 

बढ़िया लॉंच पैड मिला है 

मार्क्स से कोई 


मार्स तक नहीं पहुँचता 

ज्ञान, गति और गुणवत्ता 

बनाए रखना पड़ता है 


अपनी कविता ख़त्म करते हुए 

आख़िरी बात 

आज से बीस वर्ष बाद 

किसी को नहीं रहेगा याद 

 किसने किस सब्जेक्ट में 

टॉप किया था 

कितना मार्क्स मिला था 


बस जिसने जीवन को हमेशा 

बड़ा सा यस कहा 

जिसने हर मुश्किल को 

बेबस किया 

 संघर्ष के बादलों से 

उगेगा वहीं 

विनर कहलाएगा


जो ऊपर गतिमय 

भीतर शांत रहेगा 

वहीं समंदर कहलाएगा ।


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