रचना
रचना
रचना क्या है?
चन्द भाव, चन्द शब्दों का तालमेल;
बस इतना ही?
फिर तो स्याही का कागज
से मेलभर है रचना।
पर क्या वाकई इतना आसान है,
रचना को कल्पना पटल से,
कागज पर उकेरना?
वाकई?
शायद नहीं!
शिशु समान, गर्भ में रखना होता है,
क्षण-पल, दिवस-मास, वर्षों तलक,
फिर सह, आस-हताशा, आशा-निराशा।
देना होता है जन्म, कभी अपने लिये
तो कभी औरों के लिये।
रचना क्या है?
शायद कातिब का कोई अदृश्य अंश।