जीत
जीत
नसीब को क्यों कोसना
कर्म से पहचान होती है
विश्वास हो अगर ख़ुद पर तो
फ़तह उसी की होती है
दृढ़ इच्छा हो जिसकी
जीत उसी की होती है
मुश्किल हो चाहे ज़िंदगी
हौसला कभी न खोती है
पराजित कर निराशा को
कर्मशील रहना है जीवन में
मज़बूत हो इरादे जिसके
बाज़ी उसी के हाथ होती है
सिखाती है हार भी कभी
सबक यूँ ज़िंदगी जीने का
गिरकर उठ, लड़ता है जो
जयकार उसी की होती है