यादों के बस्ते
यादों के बस्ते
यादों के बस्ते को
आज खोला तो
कुछ यादों के पन्नों को
सहेज के देखा तो
दिल की किताब को
भीगा हुआ पाया...
बचपन के वे क्या दिन थे
ना शिकवे थे न ग़म थे
दिल ऊँची उड़ानों के लिए
मचलता था हर वक़्त
और आँखों के सपने
उड़ानों को पर दे जाते थे...
घर के सामने वाला पेड़
अभी भी वैसे ही खड़ा है
नुक्कड़ की दुकान पे
आज भी सामान
वैसे ही बिकते हैं
देखने से आस-पास की दुनिया तो
बदली तो नहीं लगती
पर लगता है कि अपने आप में ही
बहुत बदल - सा गया हूँ मैं...
अपनी महत्वकांक्षाओं को
सर्वोपरि करते हुए
दुनिया की अंधी दौड़ में
तेज़ भागा चला
जा रहा हूँ मैं
कहीं मुड़ने को मोड़ नहीं है
कहीं ठहरने का वक़्त नहीं...
आसपास के लोग
बहुत खुश हैं मेरी तरक्की से
और मैं अपनी उन्नति में ही
गिरता जा रहा हूँ
चांदी के सिक्कों ने
आँखों में नए सपने बना लिए हैं
पर दिल ने अभी भी
पुराने ख्वाबों में ही
आशियाँ बना रखा है...
दिल की किताब को
फिर से बंद कर के
यादों के बस्ते में
रख कर फिर से
और नए सपनों का
पुलिंदा ले कर
नए सफ़र पे फिर से
निकल पड़ा हूँ मैं...।